Saturday 10 June 2017

एक डॉक्टर गांव-गांव में क्यों बांट रही हैं चप्पल ?



पेशे से वो डॉक्टर हैं लेकिन उनकी जान बसती है उन बच्चों में जो सड़क पर भीख मांगते हैं या फिर कोई छोटा मोटा काम धंधा कर अपना गुजारा चलाते हैं। ये बच्चे आपको बाजार, सिनेमाहॉल और दूसरी सार्वजनिक जगहों के आसपास मिल जाएंगे जो अक्सर नंगे पैर और फटेहाल हालात में रहते हैं। डॉक्टर समर हुसैन जानती हैं कि इन बच्चों में बीमारी की मुख्य वजह उनका नंगे पैर रहना है। इसलिए वो इन बच्चों को मुफ्त में चप्पल बांटती हैं और वो ये काम अपने संगठन ‘लिटिल हॉर्टस’ के जरिये करती हैं। फिलहाल वो इस काम को दिल्ली(Delhi) के अलावा जयपुर(Jaipur) में कर रही हैं।

डॉक्टर समर हुसैन फिलहाल जयपुर से कम्यूनिटी मेडिसन में एमडी की पढ़ाई कर रही हैं। इसलिए उनको पढ़ाई के सिलसिले में अलग-अलग गांवों में जाना पड़ता है। इस दौरान समर ने देखा, ऐसी जगहों में रहने वाले बच्चों की पैरों में चप्पल नहीं होती हैं। मैं और मेरे साथी गांव के उन बच्चों को खाना, कपड़े और खिलौने देते थे। दीवाली में हम उन बच्चों को पटाखे और बिरयानी भी देते थे। कुछ समय तक ऐसा करने के बाद हमें लगा कि इस तरह से हम उनकी मदद कुछ ही दिन के लिये कर पाते थे। तब मैंने सोचा कि अगर हम इन्हें चप्पल दें तो वो कम से कम वो 6 महीने तो चलेगी।

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 समर ने देखा कि गांव में बच्चे नंगे पैर ही घूमते थे इस वजह से उनको पैरों में इन्फेक्शन और कई दूसरी बीमारियां हो जाती थीं। जिसके बाद उन्होंने नवम्बर 2015 को ‘लिटिल हॉर्ट्स’ की स्थापना की। डॉक्टर समर मानती हैं कि देश में काफी सारे संगठन काम कर रहे हैं जो कि गरीब बच्चों की किसी ना किसी तरह से मदद कर रहे हैं। लेकिन ऐसा कोई संगठन नहीं हैं जो इस तरह का काम करता हो। डॉक्टर समर बताती हैं,

एक बार मैं अपने दोस्तों के साथ जयपुर के मॉल में घूमने के लिए गयीं। घूमने के बाद जब मॉल से बाहर निकली तो मैंने वहां पर ऐसे गरीब बच्चों को देखा जिनके पैरों में चप्पल नहीं थीं। क्योंकि गरीबी के कारण उनके लिए अपने लिए दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल था ऐसे में वो अपने लिए चप्पल कहां से खरीद सकते हैं। उसी समय मैंने सोच लिया कि मैं अब ऐसे बच्चों को चप्पल पहनाउंगी।

डॉक्टर समर यह सोचकर हैरान रहतीं कि पैसों की तंगी के कारण एक ओर जहां ये बच्चे अपनी मामूली जरूरतें भी पूरी नहीं कर पाते, वहीं जब आम लोग जब कहीं बाहर घूमने जाते हैं तो 5-6 सौ रुपये ऐसे ही खाने पीने में खर्च कर देते हैं। लेकिन अगर उन पैसों में से सिर्फ 100 रूपये इन बच्चों पर खर्च किया जाए तो उससे उनके लिए 2 जोड़ी चप्पल जरूर आ सकती है।

बच्चों को चप्पल बांटने से पहले डॉक्टर समर ने अपने कुछ दोस्तों से बात की और आपस में मिलकर पैसे जुटाए ताकि गरीब बच्चों के लिए चप्पल खरीदी जा सके। इसके अलावा उन्होने क्राउड फंड़िंग के जरिये पैसा इकट्ठा किये। जो पैसे इकट्ठा हुए उससे गरीब बच्चों के लिए चप्पलें खरीदी गईं। इन चप्पलों को उन्होंने रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन और गलियों में रहने वाले गरीब बच्चों को बांटना शुरू किया। डॉक्टर समर ने अपने इस कैम्पेन की शुरूआत दिल्ली और जयपुर से की। चप्पल बांटने से पहले उनकी टीम सबसे पहले उस इलाके का सर्वे करती है जहां पर उनको चप्पल बांटनी होती है। वहां पर टीम के सदस्य देखते हैं कि कहां पर ज्यादा बच्चों के पास चप्पल नहीं हैं। इस दौरान वो उन बच्चों के साथ उनके अभिभावकों को चप्पल पहनने के फायदे भी बताते हैं ताकि उनका बच्चा रोज चप्पल पहने। डॉक्टर समर की टीम में इस वक्त करीब 30 वालंटियर जुड़े हैं जो कि मेडिकल के अलावा एमबीए और इंजीनियरिंग क्षेत्र से जुड़े छात्र हैं। डॉ समर अपने इस अभियान को देश के और शहरों में विस्तार देना चाह रही हैं। पर फंडिंग आड़े आ रही हैं।

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‘लिटिल हार्ट्स’ नाम से एक फेसबुक पेज भी बनाया गया है, जहां पर अगर कोई व्यक्ति पैसे या चप्पल दान में देना चाहता है तो वो जानकारी जुटा कर ऐसा कर सकता है। इसके अलावा डॉ समर क्राउड फंडिंग के जरिये पैसा इकट्ठा कर गरीब बच्चों के बीच चप्पल बांटने की रफ्तार को बढ़ाना चाहती हैं। डॉक्टर समर के मुताबिक उनको कोई भी कम से कम 100 रुपये भी दान में दे सकता है। एमडी की पढ़ाई कर रही डॉक्टर समर का ये अंतिम साल है, इसलिये वो मानती हैं कि अपनी पढ़ाई के कारण इस काम में ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती, लेकिन पढ़ाई खत्म करने के बाद वो इस काम को तेजी से आगे बढ़ाएंगी। डॉक्टर समर फिलहाल इस काम को शनिवार और रविवार के दिन करती हैं। उनकी योजना है कि वो ज्यादा से ज्यादा गरीब बच्चों के बीच चप्पल बांटने के अलावा उन बच्चों को स्कूल भेजें जो या तो स्कूल नहीं जाते या अलग-अलग कारणों से जिनका स्कूल छूट गया है। ताकि ऐसे बच्चे भी पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़े हो सकें।


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